गुरुवार, 12 सितंबर 2013

अविलंब,पुख्ता हो न्याय


जाने कितनी निर्भया की
आत्मा न्याय की है प्यासी
मोक्ष इन्हे दिलाने को
दोषियों को जरूरी है फांसी

दुष्कर्म,हत्या का साहस
फिर नाबालिग की दलील क्यों?
जुर्म नही है ये छोटा
फिर सज़ा मे इनकी ढील क्यों ?

ऐसे घिनौने कृत्य पर
मौत की सज़ा है नाकाफी
भरोसा कानून से न उठे
हरगिज मिले न इन्हे माफ़ी

कानून के विद्वानों से
देश के हुक्मरानों से
न्याय के भगवानों से
विनती करे कविराय
अविलंब,पुख्ता हो न्याय

गलियों मे, मकानों मे
कार्यालयों मे, दुकानों मे
भीड़ मे, सूनसानों मे
बहू ,बेटीयाँ और नारियाँ
भयमुक्त हो आयें जायें

क्षीर द्रोपदी का हरने से
दुस्सासन भी कतरायें
सीता को छूने का दुस्साहस
रावण भी न कर पाये
सुरS

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